SFI शिमला शहरी कमेटी द्वारा पर्यावरण दिवस पर ACADEMIC COMPETITION का आयोजन किया गया।
इसमें शहर के 21 स्कूलों के 500 के करीब छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। इस Competition में GK TEST, POSTER WRITING, DACLEMATION अनेक प्रकार के स्पर्धाएं हुईं।
इस मौके पर शिमला शहरी सचिव नेहा ठाकुर ने कहा कि सबसे पहले विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1973 को मनाया गया। इसको मानने का मुख्य कारण था पर्यावरण संरक्षण।
पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष का सभी को मिलाकर बनता है, और ये सभी चीजें यानी कि पर्यावरण हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखता है और उसे प्रभावित करता है।
नेहा ने कहा मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। पर्यावरण जैसे जलवायु प्रदूषण या वृक्षों का कम होना मानव शरीर और स्वास्थय पर सीधा असर डालता है। मानव की अच्छी-बूरी आदतें जैसे वृक्षों को सहेजना, जलवायु प्रदूषण रोकना, स्वच्छाता रखना भी पर्यावरण को प्रभावित करती है। मानव की बूरी आदतें जैसे पानी दूषित करना, बर्बाद करना, वृक्षों की अत्यधिक मात्रा में कटाई करना आदि पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित करती है। जिसका नतीजा बाद में मानव को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करके भुगतना ही पड़ता है।
पर्यावरण की बढ़ती दुर्दशा के अनेक कारण हैं।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण की दुर्दशा का कारण सरकारों की नीतियों भी रही हैं। नव – उदारवादी नीतियों के चलते औद्योगिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है जिस से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण बहुत भारी मात्रा में हो रहा है। जो मानव तथा अन्य जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं ।
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग तीव्र हो रहा है । जिसका परिणाम मृदा निम्निकरण , जैव विविधता में कमी और वायु जल स्त्रोतों के प्रदूषण के रूप में दिखाई दे रहा है । जहा पर हमें पर्यावरण को बचाने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए, तो वहीं दूसरी और रूढ़िवादी विचारधारा से संबंध रखने वाले लोग और सांसद 10 –10 बच्चे पैदा करने की हिदायतें दे रहे हैं। खनन माफिया को सरकारें बढ़ावा दे रही हैं जिससे पर्यावरण और प्रभावित हो रहा है।
वहीं जल प्रदूषण की बात करे तो देश की नदियों में बहुत बुरी दुर्दशा सरकारी नीतियों की वजह से हुई है जहा एक और केंद्र सरकार गंगा सफाई अभियान की बात करती है तो वहीं दूसरी और उसके दूषित करने के लिए मानव अस्थियों को और नदी में नहाने की अनुमति देती है जिससे जल दूषित हो रहा है । और जल प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है और पर्यावरण प्रभावित हो रहा है । इसी तरह फैक्ट्रियों और पटाखों के धुएं से वायु प्रदूषण हो रहा है ।
जलवायु परिवर्तन के कारण रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है, जबकि गर्मी की लहरें और जंगल की आग आम होती जा रही है।
आर्कटिक में बढ़ती गर्मी ने पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने , हिमनदों के पीछे हटने और समुद्री बर्फ के नुकसान में योगदान दिया है।उच्च तापमान भी अधिक तीव्र तूफान , सूखा और अन्य चरम मौसम का कारण बन रहे हैं पहाड़ों, प्रवाल भित्तियों और आर्कटिक में तेजी से पर्यावरणीय परिवर्तन कई प्रजातियों को स्थानांतरित होने या विलुप्त होने के लिए मजबूर कर रहा है । जलवायु परिवर्तन से लोगों को खतरा हैभोजन और पानी की कमी, बाढ़ में वृद्धि, अत्यधिक गर्मी, अधिक बीमारी और आर्थिक नुकसान के साथ । मानव प्रवास और संघर्ष का परिणाम हो सकता है
इनमें से कई प्रभाव पहले से ही वार्मिंग के मौजूदा 1.2 डिग्री सेल्सियस (2.2 डिग्री फारेनहाइट) स्तर पर महसूस किए जा रहे हैं। अतिरिक्त वार्मिंग इन प्रभावों को बढ़ाएगी और टिपिंग पॉइंट्स को ट्रिगर कर सकती है , जैसे कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का पिघलना ।
प्रदेश में भी वातावरण में बदलाव देखने को मिल रहा:नीतिश
शिमला शहरी अध्यक्ष नीतिश राजटा ने कहा कि अगर प्रदेश की बात करे तो हाल ही में प्रदेश के जंगलों में भयंकर आग लगी थी । जिसको काबू पाने में सरकार की नाकामी साफ झलकती है।
नितीश ने कहा कि जिससे प्रदेश में वातावरण में बदलाव देखने को मिला है । जबकि SFI हर वर्ष जागरूकता अभियान भी चलाती है । उन्होंने कहा कि इस बार भी SFI ने शिमला शहर के 21 स्कूलों का ACADEMIC COMPETITION का अयोजन किया। और 500 के करीब स्कूली छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया और आने वाले समय के अंदर SFI पुरे प्रदेश मे पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का काम करेंगी।